इस कविता के बारे में :
इस काव्य 'मैं यहाँ तुम वहा' को Yahya Bootwala के लेबल के तहत Yahya Bootwala ने लिखा और प्रस्तुत किया है।
मैं हूँ यहाँ साधारण लिखाई में
जो हाल ए दिल को शब्द दे पाते
तुम हो वहां आसाधारण तजुर्बो में
जो महसूस करने पर निशब्द कर जाते हैं
***
मैं हूँ सड़क के इस पार झोपड़े में
जहाँ कमरें को ही मकान कहते हैं
तुम हो उस पार एक महल में जहाँ
झूमरो में भी हीरे लगे होते हैं
***
मैं हूँ किसी ट्रेन के भरे हुए डब्बे में बैठा
जहां साँस नहीं ले पाते ख्वाब सारे
तुम हो किसी कुए के पास जहां सिक्के
उछालने पर पूरे हो जाते सपने
***
मैं हूँ एक क्यूवेकिल मैं बैठा
जहां घड़ी के बंद होने पर भी कोई नहीं
रुकता तुम किसी झूले पर बैठी हो
जहां वक्त से बदलता है रंग आसमान के
***
मैं हूँ अँधेरे में तुम हो उजाले में
मैं हूँ सवालों में तुम हो जवाबों में
मैं हूँ हर सच में और तुम हो हर उम्मीद में
पर क्या सच में हर उम्मीद अच्छी होती है
तजुर्बे तो जंग की भी वज़ह बन जाते हैं
और महलों में रिश्ते दीवार से बट ते है
***
सिक्कों का नसीब भी पलटता है
और जो वक्त गुजर जाये
वो पल बस बर्बाद ही लगता है
जो इच्छाये हक़ीक़त से नफरत करवाती है
सच होने पर वो इच्छायें हक़ीक़त सी
ही चुभ जाती है जो पाया ही नहीं
***
उसके सुकून मे क्यूँ जी रहे हो
और जो है पास उसपे सवाल क्यूँ उठा
रहे हो ये कौन से कल से हमने उम्मीद
लगा कर रखी है
***
जिसकी वजह से हमने अपने आज से
ही झगड़ा कर लिया है
तो इसलिए जब तुम और मैं
ना सही ना गलत
तो हम दोनों एक क्यूँ नहीं
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Thank You
Main Aaj Bhi Tumhare Baare Mein Likh Raha Hu | Yahya Bootwala
Tumhari Kuchh Taarife | Yahya Bootwala
(Disclaimer: The Original Copyright Of this Content Is Belong to the Respective Writer)
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