Tumhari Kuchh Taarife | Yahya Bootwala

Tumhari Kuchh Taarife | By Yahya Bootwala


इस कविता के बारे में :

 इस काव्य 'तुम्हारी कुछ तारीफे' को Yahya Bootwala के लेबल के तहत Yahya Bootwala ने लिखा और प्रस्तुत किया है।

 

Tumhari Kuchh Taarife


विनाश के बाद के निर्माण में ली गयी


जिंदगी में पहली साँस सी लगती हो तुम


जिसके होने से ही सुकून मिल जाता है


और जिसके ना होना हर चीज़ को 


बेमतलब बना देता है 



***

 

चादर की सिलवटें में छुपे राज 


जैसी लगती हो तुम सुलझने पर भी कहा 


मेरी निशानियाँ भुला पाती हो 



***



हर करवट पर मेरे साथ लिपटी जाती हो


जितना लिपटे संग उतनी मुश्किल 


जुदाई कर जाती है मेरी कलम जो कोशिश 


करके भी ब्यान नहीं कर पाए वैसे किस्से 


सी लगती हो 

 

***



क्यू कैद करू तुम्हें कागज़ पर


तुम लकीरों की बंदिश से आजाद 


ही अच्छी लगती हो जेवर सी पहनती हो 


अपनी हर अदा बिंदी मे सादगी ओर 


झूमको मे मेरी जान रखती हो 



***



वैसे तो यह दुनिया है तुम्हारी कदमों 


की धूल के बराबर तुम फिर भी इसे 


प|यल जैसी पहनती हो 



***



खोकर जिसे जन्नत भी जमीन से जलता हैं


तुम खुदा सी अफसोस सी लगती हो 


क्यू ना रखूं तुम्हें तारों के दर्जे पर 


Mere Kuchh Sawaal Hai | Zakir Khan

***



तुम आसमान सी आजाद लगती हो 


मेरे ज़मीर की उम्मीद के लिए जरूरी लगते हो 



***

 

लोग कहते हैं कि दोनों मिलते हैं इक जगह 


मैं जानता हूँ इसे नजरो का धोखा कहते है 


फिर भी उस धोखे पर तेरा इन्तज़ार करता हूँ



*****

Thank You

Main Yahan Tum Wahan | Yahya Bootwala

Main Aaj Bhi Tumhare Baare Mein Likh Raha Hu | Yahya Bootwala


(Disclaimer: The Original Copyright Of this Content Is Belong to the Respective Writer)


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