Mere Kuchh Sawaal Hai | Zakir Khan

Mere Kuchh Sawaal Hai | Best Poetry of Zakir Khan


Mere Kuchh Sawaal Hai

मेरे कुछ

 

सवाल हैं जो

 

सिर्फ क़यामत के रोज़

 

पूछूंगा तुमसे

 

क्योंकि



***



उसके पहले तुम्हारी और मेरी

 

बात हो सके

 

इस लायक नहीं हो तुम।

 

मैं जानना चाहता हूँ,

 

क्या रकीब के साथ भी

 

चलते हुए शाम को यूं हीे



***



बेखयाली में

 

उसके साथ भी हाथ

 

टकरा जाता है तुम्हारा,

 

क्या अपनी छोटी ऊँगली से

 

उसका भी हाथ

 

थाम लिया करती हो



***



क्या वैसे ही

 

जैसे मेरा थामा करती थीं

 

क्या बता दीं बचपन की

 

सारी कहानियां तुमने उसको

 

***



जैसे मुझको

 

रात रात भर बैठ कर

 

सुनाई थी तुमने

 

क्या तुमने बताया उसको

 

कि पांच के आगे की

 

हिंदी की गिनती

 

आती नहीं तुमको



***

वो सारी तस्वीरें जो

 

तुम्हारे पापा के साथ,

 

तुम्हारे भाई के साथ की थी,

 

जिनमे तुम

 

बड़ी प्यारी लगीं,

 

क्या उसे भी दिखा दी तुमने


Sab Sambhal Lete Hain Hum | Zakir Khan

***

 

ये कुछ सवाल हैं

 

जो सिर्फ क़यामत के रोज़

 

पूँछूगा तुमसे

 

क्योंकि उसके पहले

 

तुम्हारी और मेरी बात हो सके

 

इस लायक नहीं हो तुम



***

 

मैं पूंछना चाहता हूँ कि

 

क्या वो भी जब

 

घर छोड़ने आता है तुमको

 

तो सीढ़ियों पर

 

आँखें मीच कर

 

क्या मेरी ही तरह

 

***



उसके भी सामने माथा

 

आगे कर देती हो तुम वैसे ही,

 

जैसे मेरे सामने किया करतीं थीं

 

सर्द रातों में



***



बंद कमरों में

 

क्या वो भी मेरी तरह

 

तुम्हारी नंगी पीठ पर

 

अपनी उँगलियों से

 

हर्फ़ दर हर्फ़

 

खुद का नाम गोदता है,



***



और क्या तुम भी

 

अक्षर बा अक्षर

 

पहचानने की कोशिश

 

करती हो

 

जैसे मेरे साथ किया करती थीं



***

 

मेरे कुछ सवाल हैं

 

जो सिर्फ क़यामत के रोज़

 

पूछूगा तुमसे

 

क्योंकि उसके पहले

 

तुम्हारी और मेरी बात हो सके

 

इस लायक नहीं हो तुम।



*****


Thank You

Zakir Khan Best Shayaris


( Disclaimer: The Original Copyright Of this Content Is Belong to the Respective Writer )


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