Sab Sambhal Lete Hain Hum | By Zakir Khan
इस कविता के बारे में :
इस काव्य 'सब संभाल लेते हैं हम' को ज़ाकिर खान ने लिखा और प्रस्तुत किया है।
सब संभाल लेते हैं हम भाई की
लड़ाई हो या दोस्त के पछड़े
गर्लफ्रेंड का EX हो या उसके घर के
बहार नुक्कड़ पर खड़े फुकरे
***
सब संभाल लेते हैं हम हाथो का
प्लास्टर हो या छिले हुए घुटने
गिरे हो बाइक से या खड़े हो टीचर से पीटने
अब बहन तो विदाई पे रो लेगी पर हम नई रोयेंगे
चार दिन की रोड ट्रिप है पर हम व्हील पे नहीं सोयेंगे
***
एक छोटा सा किस्सा भी हो जाये
तो उसे बड़ा चढ़ा के सुनाएंगे
पर जब दिल टूटेगा ना तो अपने
दोस्तों को भी नहीं बताएँगे
क्यूंकि सब संभाल लेते हैं हम
***
क्या है ना दारु की कैपेसिटी से हमारी
औकात नापी जाती है
पर सबको घर छोड़ने की ज़िम्मेदारी
भी हमारे हिस्से ही आती है
किसी फिल्म की सैड एंडिंग हो या बेस्ट
फ्रेंड का फॉरेन जाने का फेयरवेल
***
सॉफ्ट नहीं होते हैं अगर गुस्सा आता तो आज अभी
पर प्यार जताने वाला सब कुछ कल
क्या है ना क्यूंकि माचो इतने है
पर सेंसिटिव टॉपिक पे थोड़े गड़बड़ हो जाते हैं
यार अपन लोग तो मम्मी को हग करने में भी
***
Awkward हो जाते है
घर की फाइनेंसियल प्रॉब्लम हो या
किसी की तबियत ख़राब
पापा की सोशल स्टैंडिंग हो या सेफ्टी
सिक्योरिटी का सवाल
सब संभाल लेते हैं हम
Mere Kuchh Sawaal Hai | Zakir Khan
***
हम वो है जो फूटपाथ पर बहार की तरफ चलते है
साया बनते है परिवार का पर धुप में खुद पलते है
कभी हमारी भी मर्दानगी का पर्दा हटा कर देखना
कभी थाम ना हमारा भी हाथ कैसे हो तुम पूछना
***
क्यूंकि यार हमारी भी सख्त शकलों
के पीछे एक मासूम सा
बच्चा है जी जिसकी ख्वाइशें घर गाडी आसमान नहीं
अपनापन सच्चा है जी हमे भी डर लगता है
अकेले अँधेरे कमरों में हम भी सो नहीं सकते
और सच कहूँ तो झूठे है वो लोग
जो कहते हैं की मर्द रो नहीं सकते
***
बाकी हाँ इसके अलावा सब संभाल लेते हैं हम
भाई की लड़ाई हो या दोस्त के पछड़े
गर्लफ्रेंड का Ex हो या उसके घर के
बाहर नुक्कड़ पर खड़े फुकरे
सब संभाल लेते हैं हम
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